प्यारे 2018,
तुम हमेशा मेरे लिए यादगार बनकर रहोगे। तुम जा रहे हो तो सोचा तुम्हे अल्विदा बोल ही दू। तुमने बहोत कुछ सिखाया, चाहे फिर वो जीवन के ऊँचे-नीचे पड़ाव पर खुद को संभाल हो या अपने मन की पीड़ा को खुद मे ही सहेज़ कर रखना। जहाँ गुज़रे साल ने मुझसे मेरी सबसे प्यारी चीज़ को छिना था। वही तुमने बहोत कुछ दिया और साथ मे दिया एक पिटारा, जिसमें तुमने कुछ खट्टी-मीठी यादो को एक सही तरीके से लगाया है। मैंने इस पिटारे को अपने मन की अल्मारी मे संभाल कर रख लिया है। मैं अपने ह्रदय से तुम्हारा धन्यवाद करता हूँ।
Monday, 31 December 2018
अल्विदा 2018
Sunday, 2 December 2018
सपनें
जूतों के फीते खुले हुवे थे और पैदल चलने से कुछ धूल भी उसके जूतों पर चढ़ गई थी।
लेकिन कुछ सपनें थे।
जो उसकी आँखों मे चमक रहे थे।
✍🏻 By : आर. के. कश्यप
Friday, 14 September 2018
वो पुराने ख़त और उनके जवाब
वो पुराने ख़त औऱ उनके जवाब:-
बाहर बहोत तेज़ बारिश हो रही थी और दिन भी ढलने को था। मैं अपने घर की बाल्कनी मे बैठ कर, आसमां से गिरती बारिश की बूंदो को देख रहा था जो हवा के इशारों पर नाच रहे पेड़ो को भीगा रही थी।
"ये वो दिन था जो मुझे मेरी रुटीन जॉब मे रेस्ट के लिए मिलता है। दिन और रात की शिफ़्ट वाली इस जॉब मे,एक दिन आराम के लिए मिल ही जाता है। ये वो दिन था, जो मेरे अगले दिन की प्रक्रिया को पूरी तरह बदल देता था।
मैं इस अंजाने से शहर मे पिछले कई सालों से रह रहा था। लेकिन मैं जब भी इस शहर को गौर से देखता, तो ये मुझे उतना ही अज़्नबी लगता जितना पहली मुलाक़ात मे लगा था। या यूं कहु के इस शहर में जो मेरा अपना था वो इस शहर की सारी रौनक लेकर बिना बताए कही ग़ुम हो गया था।"
मैं कुर्सी पर बैठा, हवा के साथ आ रही बारिश की फुआऱो को अपने चेहरे पर गिरते हुवे महसूस कर रहा था। लेकिन आज हवा के साथ आ रही धीमी-धीमी मिट्टी और फूलों की खुशबू ने मेरे जेहन मे दफ़्न ख्यालो के घर मे हलचल सी मचा दी थी। वो ख्याल जो सिर्फ एक सपना बन कर रह गया। एक छोटा सा ख्याल जो एक शब्द मे सिमट जाये। एक छोटा सा ख्याल जिस पर सिर्फ मेरा हक़ था।
निमिता! मेरी मोहब्बत निमिता।
निमिता! जिसकी मुस्कुराहट सर्द सवेरे में बादलों के पीछे से छन्न के आती गुनगुनी धूप। जिसकी जुल्फों के खुल जाने पर हवा मे एक इत्र सा गुल जाता था। जिसकी सादगी और शायरी का पूरा कॉलेज दीवाना था।
निमिता! मेरी मोहब्बत निमिता।
मैं अपने अन्दर चल रही यादों और ख्यालो के बीच की बेहश को एक जज की तरह सुन्न रहा था। ताकि अन्त मे किसी एक को दोषी घोषित कर के कड़ी से कड़ी सज़ा दे सकूँ।
तभी, मेरे पीछे दरवाज़े पर खड़े विभोर चाचा ने आवाज़ दी!
To be continue...
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