Sunday, 2 December 2018

सपनें

जूतों के फीते खुले हुवे थे और पैदल चलने से कुछ धूल भी उसके जूतों पर चढ़ गई थी।

लेकिन कुछ सपनें थे।
जो उसकी आँखों मे चमक रहे थे।

✍🏻 By : आर. के. कश्यप

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