Friday, 16 June 2017

ये रातें, ये मौसम

सुबह के 3 बजे है। सूरज की किरणे सुबह से अभी मीलो दूर है। आसमान मे पहली बारिश के बादल छाये है।मेरी नींद इन बदलो के रिमझिमाने और ठण्डी हवाओ के झोंको के छु जाने से खुली है।ये ठण्डी हवाए इस आसमा के तले बेपरवाह सी घुमरहि है,और  जिस्म मैं शरसराहट को पेदा कर रही है। इन हवाओ से,आसमान से गिरती बूंदो से जैसा सुकून इन पेड़ो को और इस पियासी ज़मीन को मिल रहा है। वैसा ही सुकून मेरी रूह को और मेरी जिस्म को मिल रहे है। एक नशा इन हवाओ में, 'महसुस होता है। जैसे नींद और मदहोशी मेरी बाहें थामे अपने आग़ोश में ले रही है।

इन बूंदों के छूने से शरीर में दौड़ जाने वाला कम्पन वैसा ही है।जैसा महबूब के पहली बार छु जाने से एक आशिक़ के बदन मे दौड़ जाता है।
मैं अपनी आँखे बंद कर इन बूंदो और हवाओ से मिलने वाले सुकून को अपनी रूह तक ऊतर जाने देना चाहता हु।

अभी ठंड़ी हवा का एक झोका मुझे छु के गुजर है जिसने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए और एक मुश्कुराहट को मेरे चेहरे पे छोड़ कर अलविदा कह गया।

No comments:

Post a Comment