Friday, 19 January 2018

तुम कोई और हो...

तुम कोई और हो। हाँ! तुम कोई और हो।
तुम वो नही, जो मेरी धड़क बढाती थी।
तुम वो भी नही,जिसे देख मेरी साँसे थम-सी जाती थी।
तुम कोई और हो, हाँ! तुम कोई और हो।

तुम्हे तो बारिश की बूँदो से खेलना पसन्द था,बारिश के पानी मे कागज़ की कश्तियाँ चलना पसन्द था।
लेकिन आज, बारिश की बुँदे तुम्हे छुए, ये तुम्हे पसन्द नहीं।

एक वक़्त था, जब हम शाम ढ़ले तुम्हारे घर की छत पर बैठ कर रफ़ी और किशोर के नग़मे सुना करते थे।
कॉलेज के सामने वाली टपरी पर जाकर, कुलढ वाली चाय पिया करते थे।
लेकिन तुम्हे अब "chainsmokers' को सुन्ना ज्यदा पसंद करती हो।
तुम्हे कुलढ वाली चाय से ज्यदा, कॉफ़ी पसन्द करती हो।

आज तुम वो नही, जो कल हुआ करती थी।
तुम कोई और हो, हाँ! तुम कोई और हो।

No comments:

Post a Comment